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प्रभाती - 1 / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
Kavita Kosh से
हुआ प्रात अब जागो प्यारे,
मुन्ने मेरे अधिक दुलारे।
जागीं चिड़ियाँ चुह-चुह करती,
फुदक फुदक कर उड़ती फिरती।
तुम भी गीत सुनाओ न्यारे,
मुन्ने मेरे अधिक दुलारे।
पौ फट चुकी आ रहे दिनकर,
चढ़ अपने सोने के रथ पर।
नभ में अपनी किरण पसारे,
मुन्ने मेरे अधिक दुलारे।
धीरे प्रात समीरण डोली,
फूलों ने पंखुडियाँ खोली।
तुम भी आँखें खोलो प्यारे,
मुन्ने मेरे अधिक दुलारे।
गहरा अंधकार भागा है,
नव प्रकाश सोकर जागा है।
जाग, जाग घर के उजियारे,
मुन्ने मेरे अधिक दुलारे।