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प्रयत्न स्पर्श / कौशल्या गुप्ता
Kavita Kosh से
आसमान फट गया था क्या?
भरा मेघ एक ही पल में,
एक ही जगह, एक ही बार में
बरस कर खाली हो गया था क्या ?
जितनी जल-धार
उतने ही गीत बरस गये,
उतनी ही लय सुन गईं
एक ही बार
सब कुछ एक साथ।
एक पकड़ूँ तो दूसरा छूट गया,
एक सुनूँ, तो दूसरा गुज़र गया।
प्रयत्न स्पर्श
आज भी बसा है अन्तर्मन में।
कानों में पड़ा वह
अशब्द, मधुर स्वर
समाया है
अन्दर के निस्वर स्वर में –
किये है मन-उपवन
मुकुलित।