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प्राणाग्नि / पुष्पिता
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अशोक वृक्ष-सा 
आवक्ष लेता है प्रणय 
साँसें लिखती हैं अछोर गुप्त-लिपि 
मन की जड़ों तक 
तितिक्षा से मिलने के लिए। 
मेरे-तुम्हारे 
प्रणय की साक्षी है प्राणाग्नि 
अधरों ने पलाश-पुष्प होकर 
अभिषेक किया है प्रणय-भाल 
मन-मृग की कस्तूरी सुगंधित है जहाँ 
साँसों ने पढ़े हैं अभिमंत्रित सिद्ध मंत्र 
एक दूसरे के देह-कलश के 
अमृत-जल ने 
पवित्र की है देह 
मौन स्पर्श ने 
लिखे हैं अघोषित शब्द 
देह के हवन कुंड में
पवित्र-संकल्प के साथ 
समर्पित हुई है प्राणों की चिरायु शक्ति 
अधरों ने अधरों पर लिखा है 
प्रणय का प्रथम संविधान 
प्रेम का नव्य संयुक्तानुशासन 
एकत्व और एकात्मकता के लिए।
	
	