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प्रात अरुणोदय / प्रेमलता त्रिपाठी
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					प्रात अरुणोदय लिए जब दिन सँवरता है। 
पथ नमन हम कर चलें मिटती विकलता है। 
बेड़ियाँ समझें नहीं मनु धर्म अनुपम को, 
धीर मन होता सफल मन स्वार्थ थकता है। 
नीतियाँ संग्राम बन क्यों दुख हमें देतीं, 
मान्य जीवन मूल्य ही दुख दूर करता है। 
धर्म सधते मान्यता पर शुद्ध हम साधक, 
सारथी शुचि मन बने मिलती सफलता है। 
विज्ञ जन से सीख ले बढ़ना सदा जाना, 
ज्ञान के आगे सभी का शीश झुकता है।
	
	