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प्रार्थना / रामधारी सिंह "दिनकर"

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(१)
प्रार्थना में शक्ति है ऐसी कि वह निष्फल नहीं जाती।
जो अगोचर कर चलाते हैं जगत को,
उन करों को प्रार्थना नीरव चलाती है।

(२)
प्रार्थना से जो उठा है पूत होकर
प्रार्थना का फल उसे तो मिल गया।

(३)
अर्थ नीचे ही यदि रह गया,
शब्द क्या उड़ते जाते हैं?
अर्थ के बिना शब्द हे मित्र!
स्वर्ग तक पहुँच न पाते हैं।