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प्रार्थना का एक प्रकार / अज्ञेय
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कितने पक्षियों की मिली-जुली चहचहाट में से
अलग गूँज जाती हुई एक पुकार :
मुखड़ों-मुखौटों की कितनी घनी भीड़ों में
सहसा उभर आता एक अलग चेहरा :
रूपों, वासनाओं, उमंगों, भावों, बेबसियों का
उमड़ता एक ज्वार
जिस में निथरती है एक माँग, एक नाम-
क्या यह भी है
प्रार्थना का एक प्रकार?
नयी दिल्ली, 5 जून, 1968