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प्रिये / सीमा 'असीम' सक्सेना
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कितना माधुर्य
कितना प्रेम
छलक उठता है
जीवन में
एक मधुमास आ जाता है
बसंत दस्तक देने लगता है
हर समां रंगीन
खुशनुमा लगने लगता है
जब तुम कह देते हो
ओ प्रिये
मेरी प्रिया।