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प्रेक्षक / आशुतोष दुबे
Kavita Kosh से
जैसा वह था
नहीं रहा
बत्तियाँ जल जाने के बाद
वह, जो सिर झुकाए उठ रहा है
बाहर निकलने के लिए
कहीं का कहीं निकल गया है
जल में गिरा है कंकर
बन रहे हैं वर्तुल
अन्त में क्या थिरेगा
अन्त में क्या रहेगा
घर जो पहुँचेगा
कौन होगा ?
वह जो बोलेगा
उसमें किसकी आवाज़ होगी ?
वह, जो किसी और की कथा
देख आया है अंत तक
अपनी कथा अधबीच से
बदल सकेगा ?
चाहे भी,तो
सिर्फ प्रेक्षक रह सकेगा ?