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प्रेतलोक में / मक्सीम तांक
Kavita Kosh से
एक बार मैं
प्रेतलोक में गया
दान्ते के संग
उसके अँधियारे घेरों में
घूम रहे थे हम
तभी कवि रुक गया
अचम्भे में आ
विश्वास नहीं था
जो कुछ उसने देखा
पहली बार
अँधेरे की वह दुनिया
दुःख से बोझिल
प्रेतों की दुनिया
जब देखी थी उसने
तब से अब तक
जाने कितने
और नए घेरे बन आए
जो प्राचीन काल में अनजाने थे