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प्रेम का आकार / जय राई छांछा
Kavita Kosh से
तुम्हारे साथ ही बैठा / तुम्हारे साथ ही उठा
तुम्हारे संग ही चला / तुम्हारे संग ही खेला
निकट का तुम्हारा प्रेम
एकदम तिल के आकार जैसा लगा ।
तुहें गाँव में ही छोड कर / शहर आया मैं
गाँव जितना ही लगा तुम्हारा प्रेम
स्वदेश छोड / विदेश पहुँचा
देश जितना ही लगा तुम्हारा प्रेम
भू-तल छोड़ / चाँद पर पहुँचा
पृथ्वी जितना ही लगा तुम्हारा प्रेम ।
अहा! कितना मीठा भ्रम !
या कोई बता सकता है
कैसा होता है प्रेम का आकार ?
मूल नेपाली से अनुवाद : अर्जुन निराला