भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम का आकार / जय राई छांछा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारे साथ ही बैठा / तुम्हारे साथ ही उठा
तुम्हारे संग ही चला / तुम्हारे संग ही खेला
निकट का तुम्हारा प्रेम
एकदम तिल के आकार जैसा लगा ।

तुहें गाँव में ही छोड कर / शहर आया मैं
गाँव जितना ही लगा तुम्हारा प्रेम
स्वदेश छोड / विदेश पहुँचा
देश जितना ही लगा तुम्हारा प्रेम
भू-तल छोड़ / चाँद पर पहुँचा
पृथ्वी जितना ही लगा तुम्हारा प्रेम ।

अहा! कितना मीठा भ्रम !

या कोई बता सकता है
कैसा होता है प्रेम का आकार ?


मूल नेपाली से अनुवाद : अर्जुन निराला