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प्रेम में चुप्पी / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
चुप्पी का कोई मसीहा नहीं जैसे
और न ख़ुशी की कोई ज़मीन
एक जीवित अभिव्यक्ति की तरह चुप्पी
अदृश्य पुल पर सधे क़दमों से चलती हुई
चुपचाप से अपना काम कर लौट जाती है
आँखों में एक सितारा टूटने और था
मन भीतर एकतारा बजने का सबब यही
चुप्पी रही थी
चुप्पी के पदचापों से जहाँ पर भी गड्ढे पड़े
बस वहीं प्रेम का शीतल जल इकट्ठा हुआ
चुप्पी की मीठी घंटियाँ
इन्ही माँसल कानों से सुनी
जो एक ऊँची पहाड़ी चोटी से
क़दम-दर-क़दम धरती
मेरे कानों के ठीक नज़दीक आई
क्योंकि चुप्पी के बाद
सिर्फ़ संगीत ही
प्रेम के नज़दीक आ सकता है