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प्रेम — चार कविताएँ / मालिनी गौतम

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1

प्रेम.
ख़नकता है
मुनिया की गुल्लक में
ख़नकती
छोटी-छोटी
आशाओं-सा..

2

प्रेम..
बेक स्टेज में बैठे
एक्स्ट्रा आर्टिस्ट-सा
तोड़ता रहा दम
अपनी बारी के
इन्तज़ार में...

3

प्रेम
टँगा था
दीवार पर लटकी
सुनहरी फ़ोटो फ्रेम में,
किसी मीठी नज़र के
टकराते ही
काँच दरक गया
और तस्वीर उतर आई
उन मीठी-सी आँखों में ..

4

प्रेम ...
नदी पर झुकी हुई
शाख़ पर
लटका रहा
ज़र्द पत्ते-सा
मंज़ूर था उसे
तैरना और डूबना दोनों ही ...