फ़नकारों के नाम / फ़राज़
फ़नकारों<ref>कलाकारों</ref> के नाम
तुमने धरती के माथे प’ अफ़्शाँ <ref> स्त्रियों के बालों या गालों पर छिड़कने वाला चूर्ण</ref> चुनी
ख़ुद अँधेरी फ़ज़ाओं में पलते रहे
तुमने दुनिया के ख़्वाबों की जन्न्त <ref>स्वर्ग </ref> चुनी
ख़ुद फ़लाकत<ref>निर्धनता </ref> के दोज़ख़ <ref>नर्क </ref> में जलते रहे
तुमने इन्सान के दिल की धड़कन सुनी
और ख़ुद उम्र-भर ख़ूँ उगलते रहे
जंग की आग दुनिया में जब भी जली
अम्न<ref> शांति</ref> की लोरियाँ तुम सुनाते रहे
जब भी तख़रीब<ref>विध्वंस </ref> की तुन्द<ref>प्रचण्ड </ref> आँधी चली
रोशनी के निशाँ तुम दिखाते रहे
तुमसे इन्साँ की तहज़ीब<ref>संस्कृति </ref> फूली-फली
तुम मगर ज़ुल्म के तीर खाते रहे
तुमने शहकार<ref>कलाकृतियाँ </ref> ख़ूने-जिगर<ref> जिगर के ख़ून </ref> सजाए
और उसके एवज़ <ref> बदले में</ref> हाथ कटवा दिए
तुमने दुनिया को अमरत<ref>अमृत </ref> के चश्मे दिखाए
और ख़ुद ज़हरे-क़ातिल <ref> हंता का विष</ref> के प्याले पिए
और मरे तो ज़माने के हाथों से वाये
तुम जिए तो ज़माने की ख़ातिर जिए
तुम पयम्बर<ref>दूत </ref> न थे अर्श<ref> आकाश</ref> के मुद्दई<ref>दावा करने वाले </ref>
तुमने दुनिया से दुनिया की बातें कहीं
तुमने ज़र्रों <ref>कणों</ref>को तारों की तनवीर<ref>ज्योति</ref>दी
तुमसे गो<ref>यद्यपि</ref>अपनी आँखें भी छीनी गईं
तुमने दुखते दिलों की मसीहाई <ref>उपचार</ref>की
और ज़माने से तुमको सलीबें मिलीं
काख़ो-दरबार<ref>महल और राज सभा</ref>से कूच-ए-दार <ref>फाँसी की गली</ref>तक
कल जो थे आज भी हैं वही सिलसिले
जीते-जी तो न पाई चमन की महक
मौत के बाद फूलों के मरक़द<ref>समाधि</ref>मिले
ऐ मसीहाओ! यह ख़ुदकुशी कब तलक
हैं ज़मीं से फ़लक़ तक बड़े फ़ासिले