फ़ना (मौत)-2 / नज़ीर अकबराबादी
पढ़ इल्म कई इस दुनियां में, गर कामिल<ref>योग्य</ref> जी इद्राक<ref>अक्लमंद</ref> हुए।
और लाद किताबें ऊंटों पर, हर मानी के दर्राक<ref>कुशाग्र बुद्धि</ref> हुए।
माकूल<ref>न्याय</ref> पढ़ी, मन्कूल<ref>न्यायशास्त्र</ref> पढ़ी, हर मनतक़<ref>इल्म</ref> में चालाक हुए।
या कितने इल्म के दरिया हैं, उन दरिया के पैराक हुए।
सब जीते जी के झगड़े हैं, सच पूछो तो क्या ख़ाक हुए।
जब मौत से आकर काम पड़ा, सब क़िस्से क़जिये<ref>झगड़ा, मुकद्दमा</ref> पाक हुए॥1॥
रम्माल<ref>रमल विद्या जानने वाला</ref>, नुजूमी<ref>ज्योतिषी</ref>, जफ़री<ref>परोक्षवादी</ref> हो, या गै़बों<ref>परोक्ष भाग्य</ref> के अहकाम<ref>आज्ञाएं</ref> कहे।
कुल तारे छान लिये सारे और फेंके तख़्तों पर कु़रए<ref>पांसे</ref>।
मुंह देख अजल<ref>मौत, मृत्यु</ref> की शक्लों का, सब दाखि़ल ख़ारिज भूल गए।
न तख़्ते कु़रए काम आए न रमल जफ़र कुछ पेश गए।
सब जीते जी के झगड़े हैं, सच पूछो तो क्या ख़ाक हुए।
जब मौत से आकर काम पड़ा, सब क़िस्से क़जिये पाक हुए॥2॥
मशहूर हकीम और बैद<ref>वैद्य</ref> हुए, यां पढ़कर इल्मतिबावत<ref>बैद्यक</ref> का।
दालान किताबों से रोका, और नुस्ख़ांे से सन्दूक भरा।
जब मौत मरज़ ने आन लिया, सब भूले नब्ज़ और क़ाकरा<ref>पेशाब</ref>।
गो नुस्खे़ लाख मुजर्रब<ref>परीक्षा किए हुए</ref> थे, पर काम न आया एक नुस्ख़ा।
सब जीते जी के झगड़े हैं, सच पूछो तो क्या ख़ाक हुए।
जब मौत से आकर काम पड़ा, सब क़िस्से क़जिये पाक हुए॥3॥
ले हाथ क़लम और बांध सिपर<ref>ढाल</ref> गर हुए सिपाही मुतसद्दी<ref>प्रबन्धक, हिसाब-किताब रखने वाला</ref>।
दिन रात लड़े गढ़ काग़ज से, शमशीर<ref>तलवार</ref> खिची और क़लम चली।
जब कलक<ref>अशुभ, मनहूस</ref> क़जा ने हफ़ लिखे, और सेफ़<ref>तलवार</ref> अजल की आ चमकी।
यां दफ़्तर तबलक<ref>काग़ज</ref> डूब गए, वां तेग़सिपर भी पट्ट पड़ी।
सब जीते जी के झगड़े हैं, सच पूछो तो क्या ख़ाक हुए।
जब मौत से आकर काम पड़ा, सब क़िस्से क़जिये पाक हुए॥4॥
या कोठी कर कर सेठ हुए, या खोद जमीं को खेती की।
लिख डाली बहियां लाखों की, बो डाली धरती बुरी भली।
जब हुंडी आई मालिक की, और आकर जम की भीज<ref>मालगुजारी</ref> लगी।
यां कोठी कोठे बैठ गए, वां खेती बाड़ी खेत रही।
सब जीते जी के झगड़े हैं, सच पूछो तो क्या ख़ाक हुए।
जब मौत से आकर काम पड़ा, सब क़िस्से क़जिये पाक हुए॥5॥
या मस्त शराबी रिंद<ref>शराबी</ref> हुए, या ज़ाहिद ता मक़दूर हुए।
या पी कर मैं दिल शाद हुए, या चुल्लू में मसरूर हुए।
जब उम्र के प्याले दोनों के, आ साअत पर मामूर हुए।
यां जुब्बे तसबीह दूर हुए, वां साग़र शीशे चूर हुए।
सब जीते जी के झगड़े हैं, सच पूछो तो क्या ख़ाक हुए।
जब मौत से आकर काम पड़ा, सब क़िस्से क़जिये पाक हुए॥6॥
इस दुनिया की धन दौलत में, गर शाह, सुलेमां जाह चले।
या ठहरे मीर, वज़ीर आजम, या राजा बनकर आह चले।
मुंह देख अजल के लश्कर का, तब लेकर घर की राह चले।
ने हाथी घोड़े संग गए, ने तख़्त छतर हम राह चले।
सब जीते जी के झगड़े हैं, सच पूछो तो क्या ख़ाक हुए।
जब मौत से आकर काम पड़ा, सब क़िस्से क़जिये पाक हुए॥7॥
सब छोड़ फ़क़ीर आज़ाद हुए, या दुनियांदारी लूट गए।
या शाल, दोशाले ओढ़ फिरे, या उजले पेबन्द गोट नए।
संग<ref>पत्थर</ref> और क़ज़ा के सोंटे से, सिर दोनों के जब फूट गए।
याँ सेली तागे टूट गए, वाँ जामे तन के छूट गए।
सब जीते जी के झगड़े हैं, सच पूछो तो क्या ख़ाक हुए।
जब मौत से आकर काम पड़ा, सब क़िस्से क़जिये पाक हुए॥8॥
या हाकिम या महकूम<ref>शासित</ref> हुए, या आकिल<ref>बुद्धिमान</ref> या माकू़ल<ref>समझदार</ref> हुए।
या ख़ादिम याम ख़दूम<ref>स्वामी</ref> हुए, या जाहिल या मजहूल हुए।
ज़रदार हुए, सरदार हुए, मरदूद<ref>निकम्मे</ref> हुए मक़बूल हुए।
कुछ और न देखा आखि़र को, सब अन्त इसी में धूल हुए।
सब जीते जी के झगड़े हैं, सच पूछो तो क्या ख़ाक हुए।
जब मौत से आकर काम पड़ा, सब क़िस्से क़जिये पाक हुए॥9॥
कर बैर बख़ीली<ref>कंजूसी</ref> ज़हर हुए या बख़्शिश में तिर्याक़ हुए।
या नख़्ल हुए पुरमेवों के, या ख़ाली पातों ढाक हुए।
या उम्र गु़जारी इश्रत से, या सौ ग़म में ग़मनाक हुए।
फल फूल खिलाये गुलशन के, या गलियों की ख़ाशाक<ref>कूड़ा करकट</ref> हुए।
सब जीते जी के झगड़े हैं, सच पूछो तो क्या ख़ाक हुए।
जब मौत से आकर काम पड़ा, सब क़िस्से क़जिये पाक हुए॥10॥
हक्काक<ref>नगीना जड़ने वाला</ref>, मुसव्विर<ref>चित्रकार</ref>, ज़र गर<ref>सुनार</ref> थे, या हाथ तबर<ref>तबल, कुल्हाड़ी</ref> और तेशे<ref>कुदाल</ref> थे।
या फेरी से दूकान बसी, या जंगल जंगल बेशे<ref>जंगल में रहने वाले</ref> थे।
जो इल्मो हुनर हम सीखे थे और जितने अपने पेशे थे।
बस और ‘नज़ीर’ अब क्या कहिये, सब नाहक़ के अन्देशे थे।
सब जीते जी के झगड़े हैं, सच पूछो तो क्या ख़ाक हुए।
जब मौत से आकर काम पड़ा, सब क़िस्से क़जिये पाक हुए॥11॥