भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फ़सादात-३ /गुलज़ार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मौजजे होते हैं,-- ये बात सुना करते थे!
वक्त आने पे मगर--
आग से फूल उगे, और ना जमीं से कोई दरिया
फूटा
ना समंदर से किसी मौज ने फेंका आँचल,
ना फलक से कोई कश्ती उतरी!

आजमाइश की थी काल रात खुदाओं के लिये
काल मेरे शहर में घर उनके जलाये सब ने!!