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फ़ासलों की रातें / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
देखते ही देखते
एक-एक कर ढहती गई
हँसी की दीवारें
ख़ामोशी
ईंट दर ईंट
अपना मकां बनाती रही....
आह.....!
ये फ़ासलों की रातें.....!!