भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फ़ोन / रेखा राजवंशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सोचा किसी को
फ़ोन मिलाऊँ
बात करके ही
मन बहलाऊँ ।

क्या किसी मित्र से
गपशप लगाऊँ?
नहीं
शायद सो रही हो
अच्छा यही है
उसे न जगाऊँ ।

क्या किसी अजनबी को
सोते से उठाऊँ
कुछ देर यूं ही बतियाऊँ
नहीं-नहीं
अजनबी तो अजनबी है
क्या कहूँ, क्या बतलाऊँ?

चलो
माँ से बात करूँ
फिर बच्ची बन इठलाऊँ
नहीं, छोड़ो भी
उसे क्यों सताऊँ?

अच्छा यही है
बत्तियां बुझा दूं
और सो जाऊं
कंगारूओं के देश में
नींद में खो जाऊं ।