फागुन मस्त महीना / अरुण हरलीवाल
ई फागुन मस्त महीना हे।
नइँ चाही पंखा, नइँ छाता;
कंबल से अब कइसन नाता।
कादो-कीच न रउदा कड़ुआ;
दुन्हूँ हाथ में लड़ुए-लड़ुआ।
नइँ सर्दी हे, न पसीना हे;
ई फागुन मस्त महीना हे।
बकरी-पठरू, लेरू-गइया,
काका-काकी, भउजी-भइया...
खेत बगइचा, अँगना-ढाबा,
मस्ती में बबुआ अउ बाबा।
मन महके, मनो पुदीना हे;
ई फागुन मस्त महीना हे।
बदल गेल हे हवा-पानी;
बदल गेल हे बोली-बानी।
मनहर मउसम करे तमासा;
बजे मँजीरा-तबला-तासा।
सगरो ‘तक्-धीना-धीना’ हे;
ई फागुन मस्त महीना हे।
चकमक पहिर चुनर अउ चोली,
गली-गली में नाचे होली।
रंगभरल फुचकारी लेके,
हँ-हँस हमर दुआरी छेंके।
बज रहल हिया में बीना हे;
ई फागुन मस्त महीना हे।
जिनगानी के असल मस्ती
बाँट रहल हे बस्ती-बस्ती।
मनभावन बड़ फागुन, लल्ला!
जस कुदरत के अँगुरी छल्ला।
अउ होली ओकर नगीना हे;
ई फागुन मस्त महीना हे।
मनझाँउर बइठल हे लाजो;
आइल नइँ परदेसी आजो।
एक भरम हे मन के भीत--
कइलक कोय पिया पर मंतर!
धक्-धक् धड़कइत सीना हे;
ई फागुन मस्त महीना हे।