भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फागुन मस्त महीना ऐलै / अंगिका लोकगीत
Kavita Kosh से
					
										
					
					   ♦   रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
 - अवधी लोकगीत
 - कन्नौजी लोकगीत
 - कश्मीरी लोकगीत
 - कोरकू लोकगीत
 - कुमाँऊनी लोकगीत
 - खड़ी बोली लोकगीत
 - गढ़वाली लोकगीत
 - गुजराती लोकगीत
 - गोंड लोकगीत
 - छत्तीसगढ़ी लोकगीत
 - निमाड़ी लोकगीत
 - पंजाबी लोकगीत
 - पँवारी लोकगीत
 - बघेली लोकगीत
 - बाँगरू लोकगीत
 - बांग्ला लोकगीत
 - बुन्देली लोकगीत
 - बैगा लोकगीत
 - ब्रजभाषा लोकगीत
 - भदावरी लोकगीत
 - भील लोकगीत
 - भोजपुरी लोकगीत
 - मगही लोकगीत
 - मराठी लोकगीत
 - माड़िया लोकगीत
 - मालवी लोकगीत
 - मैथिली लोकगीत
 - राजस्थानी लोकगीत
 - संथाली लोकगीत
 - संस्कृत लोकगीत
 - हरियाणवी लोकगीत
 - हिन्दी लोकगीत
 - हिमाचली लोकगीत
 
फागुन मस्त महीना ऐलै
फागुन मस्त महीना ऐलै मारे कनक पिचकारी
कन्हैया खेलै बिरज में होली, कन्हैया खेलै बिरज में होली
घर से निकली राधा गोरी
घर से निकली राधा गोरी दियो लाल रंग डारी
कन्हैया खेलै बिरज में होली, कन्हैया खेलै बिरज में होली
लाली रंग डालो रे गुलाबी रंग डालो
पीली रंग डालो रे सबुज रंग डालो
काहे करत बरजोरी कन्हैया काहे करत बरजोरी
कन्हैया मारे कनक पिचकारी
कन्हैया खेलै बिरज में होली, कन्हैया खेलै बिरज में होली
छोड़ो छोड़ो अरे कान्हा चुनरी हमारी
फट गई चुनरी रे फट गई सारी
कस कर बहियाँ मरोरी कन्हैया कर कर बहियाँ मरोरी
कन्हैया मारे कनक पिचकारी
कन्हैया खेलै बिरज में होली, कन्हैया खेलै बिरज में होली
	
	