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फिर कभी / नीरज दइया
Kavita Kosh से
जानता था कवि
राजकुमारी का प्यार
वह नहीं है
जानता था कवि
इस का अंत-
कल्पनाओं के टूटे पंख
कुछ बेतरतीब चित्र
बहुत उदास रंग
घायल सपने
और कभी न मिटने वाली
पीड़ा में तरबतर याद है
फिर भी किया
उस ने प्यार
यह मानते हुए-
कि इन सब से बड़ा है
प्यार का होना,
जिस के लिए
स्वीकार है सब।