भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फिर कभी / पद्मा चौगांवकर
Kavita Kosh से
नदी किनारे पंछी आकर,
बोला जल में चोंच डुबाकर-
‘मछली रानी, ओ दीवानी,
क्यों करती है, पानी-पानी,
क्यों न हवा से बात करे,
आसमान आबाद करे?’
मछली तब लहरों पर डोली,
धीरे से मुसकाकर बोली-
ओ पगले पंछी मस्ताने,
तू क्या जल की बातें जाने,
व्यर्थ उड़ानें ऊँची भरकर,
आखिर आता इसी जमीं पर!
आ, लहरों पर खेलें-नाचें,
आ, जल का तल नापें-जाँचें
सुनकर पंछी चौंका संभला,
सचमुच मुझे हो गया नज़ला।
है बुखार भी रहता अकसर,
और तौलिया छूटा घर पर,
राम राम फिर कभी मिलेंगे,
पानी में नाचें-खेलेंगे।