भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फूलों की नुमाइश / नज़ीर बनारसी
Kavita Kosh से
ग़म ने तो बहुत हँसी उड़ाई
गम़ की भी ज़रा हँसी उड़ाओ
आँसू की तरह लरज़ने वालो
जीना है तो क़हकहे लगाओ
कलियों की तरह से रोज़ चिटको
गुंचे की तरह से मुस्कुराओ
शबनम की रतह गिरो चमन में
गिरने पे भी कोई गुल खिलाओ
फूल एक भी नुमाइशी नहीं है
तुम लाख नुमाइशें लगाओ
फूलों को सजा के रखने वालो
जीवन भी इसी तरह सजाओ
शाखे़ तो बुला रही हैं तुझको
कहती हैं मेरे करीब आओ
और फूल ये कह रहे हैं तुझसे
देखो मुझे हाथ मत लगाओ
जिस हाल में चाहों आके मुझसे
जीने की अदाएँ सीख जाओ
कम उम्र है मेरी कम जिऊँगा
पर आखिरी साँस तक हँसूँगा
शब्दार्थ
<references/>