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फूल ख़रीदे मैंने / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
ट्रैफिक सिग्नल पर रुक कर
जो फूल ख़रीदे मैंने
देर रात तक मेरे घर में
मंद-मंद मुसकाये
सिग्नल के रुकते ही झट
वो फूल बेचने आयी
सौ के पाँच फूल लो दीदी
बोली कुछ सकुचाई
ज्यों ही मैंने फूल ख़रीदे
उछल पड़ी वो मन में
चंचलता ऐसी जैसी हो
वन के किसी हिरन में
वैसी सुंदरता फूलों की
मैंने कभी न देखी
मानो फूल सही अर्थों में
अभी-अभी खिल पाये
उन फूलों में छिपी हुई थी
जीवटता उस मन की
दो रोटी की नन्ही आशा
उस नन्हे जीवन की
गंध पसीने की जैसे
लगती थी इत्र सरीखी
फूलों की उन पंखुड़ियों में
हँसती नन्ही दीखी
रोज़ ख़रीदूँगी फूलों को
मैंने उस पल सोचा
जिससे हर संध्या में
उस घर का चूल्हा हर्षाये