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फूल हो गई हँसी / केदारनाथ अग्रवाल
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					फूल 
हो गई हँसी
रात के सितारों की
दिन हुए
पेड़
और
पेड़ खिलखिलाए हैं
काल
और काम की
डसी
जिंदगी जागी,
हर्ष
और 
हास के
हर्म्य 
महमहाए हैं
नाश की
निशा गई,
नींद का नशा टूटा,
जागरण के
पंथ 
पंथी
तमतमाए हैं
रचनाकाल: ०२-०४-१९७०
	
	