बंगाली बाबा (2) / पुष्पेन्द्र फाल्गुन
दो शाम
नाश्ते की प्लेट की जबरन अनदेखी के बाद भी
जब पिताजी को नहीं मिली गंगा
तो उन्होंने मुझे बंगाली बाबा को बुला आने का निर्देश दिया था
दरवाजे पर बाबा को जूते उतारते देख
पिताजी उछल पड़े थे गंगा से मिलने की कल्पना कर
'कब से गायब है गैया मतलब गंगा..'
बाबा के सवाल का जवाब, पिताजी अपने उच्छ्वास से देते हैं
फिर अम्मा
बाबा के आदेश पर घर भर में दिखाई देने लगीं
आधी पालथी और घुटने पर टिकाये अपने लरजते शरीर को
बाबा फूंकते हैं पीढ़े पर
अक्षत, कनेल के फूल, काजल की डिब्बी
सेंदुर, हरदी, चन्दन और रोली की चौखानी डिब्बी
दो कपूरी और एक बँगला पान का पत्ता
काला तिल और छोटे पात्र में गंगाजल
एक कुश शाखा और शुद्ध गाय के घी में बूड़ी बाती का दीप
सजता जाता है पीढ़े पर
बाबा की तर्जनी से तय स्थिति में