भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बइरिन बरसात / मुनेश्वर ‘शमन’
Kavita Kosh से
बहय कनकन बेआर,
पड़य रिमझिम फुहार।
पिया, बइरिन बरसात,
ई जराबे जियरा।।
करके हमरा अनाथ,
कहाँ रमला हो नाथ।
दरद दे के सौगात,
केकर धरला तूँ हाथ।
मरल मन के हुलास,
कते जिनगी उदास।
तोहरा लौटय ले गाँव,
हम पूजहूँ पीपरा।।
लगय सौतन के बात,
नियर भींजल-भींजल रात।
जुलुम बिरहिन के साथ,
करय बदरा बज़्जात।
सूना अँगना-दुआर,
हमर दुनिया अन्हार।
धरय मनवाँ नञ धीर,
लोरे भींजय अँचरा।।