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बचाव / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
					
										
					
					
कैसी चली हवा! 
										
										
					
					
					हर कोई
केवल
हित अपना
सोचे, 
औरों का हिस्सा
हड़पे, 
कोई चाहे कितना
तड़पे! 
घर भरने अपना
औरों की
बोटी-बोटी काटे
नोचे! 
इस 
संक्रामक सामाजिक 
बीमारी की
क्या कोई नहीं दवा? 
कैसी चली हवा!
 
	
	

