भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बच्चा / प्रतिभा सक्सेना
Kavita Kosh से
नन्हा सा बच्चा ,
सब देखता है, सुनता है,
बोलता कुछ नहीं!
हमारे सारे क्रिया -कलाप,
देखता रहता है ध्यान से,
दृष्टि बड़ी गहरी, पहुँच जाती है तल तक,
हम जो नहीं समझते ग्रहण कर लेता है!
पूजा के उपकरण सजाए गए ,देवता की प्रतिष्ठा हुई,
धूप -दीप-नैवेद्य ,फूल आरती स्तुति!
वह मगन मन देखता रहा!
दोनो नन्हे-नन्हे हाथ जोड़कर प्रणाम करवाया,
"जै करो, बेटा!"
अभिभूत था बच्चा!
अब तो राहों मे चौबारों मे,
दूकानो मे, बाज़ारों मे,
जहाँ भी सौन्दर्य और आनन्द पाता है,
तुरंत दोनो हाथ जोड़कर "जै" कर लेता है।