बच्चों की जिच / कुमार मुकुल
खिडकी के सीखचों से सटाकर
एक खाली डब्बा बांध रखा है मैने
अमूल का
ओर ढक दिया है उसे
सादे कागज से
कि भद्द ना हो दीठ की
और इंतजार में हूं कि
कोई गौरैया
इसमें वास करे
यूं
पडोस के नये निर्जन मकान में भी
रह सकती है वह
पर मैं जानता हूं
अगहन में जब धान पकेंगे
तब कंकरीट के जंगल में
मौसम की निर्जनता
मुझे ही नहीं
इस घरेलू चिडिया को भी खलेगी
इस नये बसते शहर के पडोस में
जब फसल कटेगी
और धान की एक लरछी
आपनी चोंच में दबाए
लंबी दूरी तय कर चिडिया लौटेगी
तो कैसा सूना लगेगा
जब नहीं दौडेगा कोइ्र सोनू
गट्टू या हैप्पी उसके पीछे
चिडिया के पीछे भागता
जब आएगा सोनूलाल
और छमक कर जा बैठेगी वह मुंडेर पर
तो चिढकर बोलेगा सोनू
देखिए तो अब्बा
गौरैया घर गंदा कर रही है
ओर चुप रहेंगे अब्बा
तब पूछेगा वह
गौरैया तितली को खा जाती है न अब्बा
तब सिर हिला देंगे अब्बा
वह फिर पूछेगा
चिडिया दाना भी तो खाती है
ओर दौडा जाएगा मां के पास
कि पहले उसे दाना दे
फिर कोई काम करे
फिर दाना ले दौडा आएगा वह
फेंकेगा चारा
पर चिडिया तो एक ही जान ठहरी
नहीं ही आएगी
तब उदास हो थककर
सो जाएगा वह
तब सपने में आएगी चिडिया
दाना चुगेगी उसके गुदाज हाथों से
उसकी तलहथी में जब
चिडिया की चोंच गडेगी
तो गुदगुद से जागेगा वह
और पायेगा कि गायब हैं दाने
इसीलिए खिडकी के सीखचों से
सटाकर
मैंने बांध रखा है एक डब्बा
कि कोई चिडिया इसमें वास करे
चिडिया रहेगी
तो खोज-खबर लेने
आ ही जाया करेगी बिल्ली
बेला की झाडों में दुबकी
अपनी पयारी नजरों से
जब घूर रही होगी वह
तो कभी दिख ही जाएगी चिडिया को
फिर दरवाजा तो बंद करेगी नहीं चिडिया
चीख-चीख कर वह
लगेगी जगाने जनपद को
जनपद जगे न जगे
सोनू तो जग ही जाएगा,
भागा आएगा चिडिया के पास
ओर घूरता पाएगा बिल्ली को
फिर तो ऐसा डरेगा
कि ढेला उठा पिल पडेगा बिल्ली पर
और चिडिया तो
चढ जाएगी मुंडेर पर
वहीं से गाएगी जोर से
कि कितना बहादुर है मेरा सोनू
कि समझदार है साेनू
कि अब बडा हो रहा है सोनू
चिडिया आएगी
तो जाने
ओर क्या क्या लाएगी साथ
किससे तो लाएगी ही वह
जंगल के
जंगल की आग के किस्से
जंगल के नागों के किस्से
आग के किस्से सुनाती
चिडिया की आंखें जब सूनी हो जाएंगी
तो बेचारा चिडा क्या सोचेगा
कि सूनेपन में उसके
किसी बिछडे चिडे की
राख बिछी है
और नागों के किस्से
उफ
पत्थर की बांबी में
हीरे-माणिकों के आसनों पर
सर काढे नागों के किस्से
कितना समझााती थी वह
नन्हें चिडों को
कि उधर मत जाना
जिधर मणि-माणिकों की चकाचौंध
छिटकी हो
पर नौ माह
गर्भ के अंधेरों मं उजबुजाए
बच्चों की जिच
कौन नहीं जानता।
1991