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बन्द पलकों में / हरेराम बाजपेयी 'आश'
Kavita Kosh से
अश्रु मेरे तुम्हारी आँख का काजल धो नहीं पाए,
बहुत चाहा तुम्हें लेकिन तुम हमारे हो नहीं पाए।
उनींदी बन्द पलकों में, सपने तेरे ही आए थे,
तुम्हें देखा किए सारी रात और हम सो नहीं पाए। अश्रु मेरे...
तुम्हारे ही बुलावे पर तुम्हारे द्वार हम आए,
जो कहना था तुम्हें मुझसे वही तो कह नहीं पाए। अश्रु मेरे...
तुम्हें हम छोड़ आए थे उसी दो राहे संगम पर,
खुदी को खुद से खोया पर, तुम्हें हम खो नहीं पाए। अश्रु मेरे...
अधूरी ज़िन्दगी जीकर थके हम बीच रास्ते में,
विरह का बोझ इतना था, जिसे हम धो नहीं पाए। अश्रु मेरे...
न जमाना साथ चल पाया न कानूने हया आई,
जहाँ पर तुम हँसे थे "आश" वहाँ हम रो नहीं पाए। अश्रु मेरे...