बरसायत / पतझड़ / श्रीउमेश
जेठ मास के मावस तिथि में आबै छै सुन्दर बरसायत।
सधबा इस्त्री के ई छेकै पर्व अनूठा वर-बरसायत॥
बरसंती में बेटी गाँव भरी के आबै छै।
हमरोॅ पूजा करी-करी केॅ हमरोॅ मान बढ़ाबै छै॥
बेटी-पुतहू के नैहर-ससुरारी सें ऐलै सन्देस।
रंग-बिरंगी साड़ी सें सजलोॅ छै सब के सुन्दर बेस॥
ठेकुआ आरू पिरकिया देखोॅ, लागलोॅ छेॅ गाछी तर ढेर।
सतवन्ती के यै पूजा में लागै छै तनिको नैं देर॥
डलिया साजी-करीकेॅ लानै छै लेॅकेॅ लीची-आम।
बाँसोॅ के बेना हूंकी केॅ हमरा दै छै खूब अराम॥
सत्यवान-सावित्री के सुनलेॅ छी हम्मू कथा-पुरान।
केना केॅ सावित्री छिनी लेलकै पति के यम सें प्रान॥
‘अचल रहै अहिवात सभै के, मिटै हमेसा के अवसाद।
सभ्भे ऐली छै मांगैलेॅ, हमरोॅ सच्चा आसिरवाद॥
आज कहाँ छै प्यार-खबौनी, आज कहाँ छै लीची आम।
ये पतझड़ में के पूछै छै? आज कहाँ छोॅ हे श्रीराम॥