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बह नहीं रहे होंगे / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
बह नहीं रहे होंगे
रेवा के किनारे-किनारे
उन दिनों के
हमारे शब्द
दीपों की तरह
पड़े तो होंगे मगर
पहुँच कर वे
अरब-सागर के किनारे पर
कंकरों और शंखो और
सीपों की तरह!