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बाज़ार भाव / अवतार एनगिल
Kavita Kosh से
हाट के दिन
जाने कहाँ-कहाँ से
चलकर
आते जा रहे हैं लोग
आदमी औरतें बच्चे
और भरने लगा है
बाज़ार का पाट
चहुं ओर गहमा-गहमी
चल रहा- भाव-ताव
हो रहा- मोल-तोल
ठीक-ठीक लगाओ...
खरीद के भाव दे रहा हूँ
माप दो!
रहने दो!
सोना तौल रहे हो क्या?
इस भाव आगे मिलेगा!
आप तो नाराज़ हो गये,बहन जी.....
अब नहीं गुंजाईश, भाई साहब...
कुछ तो रियायत कीजिए!
कुछ भी मत दीजिए!
आपकी अपनी दुकान है
लूटोगे क्या ?
लेना है तो लो, वर्ना रास्ता नापो!