भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाडुळी लैगे / ओम बधानी
Kavita Kosh से
लैगे बाडुळी लैगे पराज,एैगे सुवा कु रैबार
आज भौळ म साल बितीगे कब एैला स्वामि घर
रितु एैन गैन तरसौंदि रैन
स्वाणी मुखड़ी क दरसन नी पैन
फोटु म देखीक मन पुळ्यौंदु
नि द्वाळेंदु अब हौर।
तेरी माया कु निवातु छ सारू
यै बरफीला बौडर
फौज कि नौकरि भारि सगत
नि लगदु कैमा जोर।
द्यूराणी जिठाणीे देसु घुमणीन
मोळ सोरि-सोरि मेरि हाथ खुठि फटीन
पुंगड़्यौं कु काम यु सदानि इकसरी
मैन भि औण ऐंसु गैला।
फौज्यौं कु मेरि प्यारी चखुलौं सि डेरू
आज यख भोळ हैंकि जगा बसेरू
दाना बै बाबू अदान नौना
कख नचैण धार-धार।