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बादल बरसे हैं / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
तुमको लगता है
केवल
बादल बरसे हैं
मुझे पता है
किन प्रश्नों के
हल बरसे हैं
ज्यों प्यासे के पास
कुआँ
चलकर आया है
जैसे कोई
स्नेह-छत्र
बनकर छाया है
तपते मन पर
ज्यों ख़ुशियों के
पल बरसे हैं
लाये हैं
ऊसर की ख़ातिर
धानी चूनर
जागा है
चातक कंठों में
फिर से नव स्वर
दुबलायी
नदियों के
ज्यों संबल बरसे हैं
बरसे हैं,
सुनकर
स्वागत को कजरी आयी
फूल हँसे
हाथों में मेहँदी
भी मुस्कायी
इंतज़ार के
हिस्से
मीठे फल बरसे हैं।