भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बादल रोते हैं / विमल राजस्थानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न जाने क्यों बादल रोते हैं
संवेदना-शून्यता के ऊसर में-
क्यों मोती बोते हैं
कालीदास के इन संदेश-
वाहकों का रोना पड़ता है
कालिख लगा हमारा दामन-
हो इयाद्र, धोना पड़ता है
अमर शहीदों के बलि-
दान दिवस क्या इसी
तरह मनते हैं ?
न तो अश्रु हैं, नहीं आह है
ज्यों जनखे बच्चे-जनते हैं
उन हुतात्माओं का कुल-
परिवार किस दशा में- जीता है
इसकी चिन्ता नहीं किसी को-
मरी की जीती परणीता है
नमन निवेदित करते, स्मृति-
मात्र जिलाये रखते हैं हम
हमने उन मासूमों की कब-
देखी हैं वे आँखें पुरनम
इसीलिये बादल रोते हैं
संवेदना-शून्यता के ऊसर में
ही मोती बोते हैं
इसीलिए बादल रोते हैं