बापू बैठा मौन / सत्यवान सौरभ
बल रहे रिश्ते सभी, भरी मनों में भांप! 
ईंटें जीवन की हिली, सांस रही हैं कांप! 
बँटवारे को देखकर, बापू बैठा मौन! 
दौलत सारी बांट दी, रखे उसे अब कौन! 
नए दौर में देखिये, नयी चली ये छाप! 
बेटा करता फैसले, चुप बैठा है बाप! 
पानी सबका मर गया, रही शर्म ना साथ! 
बहू राज हर घर करें, सास मले बस हाथ! 
कुत्ते बिस्कुट खा रहे, बिल्ली सोती पास! 
मात-पिता दोनों करें, बाहर आश्रम वास! 
चढ़े उम्र की सीढियाँ, हारे बूढ़े पाँव! 
आपस में बातें करें, ठौर मिली ना छाँव! 
कैसा युग है आ खड़ा, हुए देख हैरान! 
बेटा माँ की लाश को, नहीं रहा पहचान! 
कोख किराये की हुई, नहीं पिता का नाम! 
प्यार बिका बाज़ार में, बिल्कुल सस्ते दाम! 
भाई-भाई से करें, भीतर-भीतर जंग! 
अपने बैरी हो गए, बैठे गैरों संग! 
रिश्तों नातों का भला, रहा कहाँ अब ख्याल! 
मात-पिता को भी दिया, बँटवारे में डाल! 
कैसे सच्चे यार वो, जान सके ना पीर! 
वक्त पड़े पर छोड़ते, चलवाते हैं तीर!
	
	