बाबू हमरोॅ / सुप्रिया सिंह 'वीणा'
छै पूज्य बाबू के चरणोॅ में,
झुकलोॅ छै माथोॅ हमरोॅ सद्दोखिन हरीघुरी।
हुनके बस एक सहारा छै दुनिया में,
रखले छै अपना छाया में सुखोॅ सें भरी-भरी।
हुनका तेजोॅ सें भरलोॅ धरती पर जैतैं,
मोॅन एक बुतरू बनी जाय छै।
बचपन के सब सुख जगी जाय छै,
आनंद-उमंग के सिरिफ मधुमास ही बरसै छै।
जिनगी केॅ सुख सरसता सें भरै लेॅ हुनी की नै करै छै,
ब्रह्मा, विष्णु, महेश छेकै पिता
देना ही केवल जानलेॅ छै।
हमरोॅ जीवन में सुख भरै लेली,
रोजे नया-नया सपना बुनै आरो ठानै,
कभी गलत होला पर स्नेह सें,
अपना पास बैठावै छै, पुचकारै छै, दुलारै छै।
मृदु-मधुर बोली सें अकसर ही,
कर्तव्य बोध समझावै छै।
धरती पर ईश्वर के अमिट सत्ता रोॅ,
हरदम एहसास करावै छै।
जीवन ही नै देलकै केवल,
जीयै के भी पाठ पढ़ावै छै।
सुधा रूप सहस्त्ररार बनी,
जीवन केॅ नया दिशा दिखावै छै,
चरण छुवै छियौं बाबू आय तोरोॅ
माथा छुवी केॅ आशीरवाद देॅ,
तोरे कारण, तोरे देलोॅ छेकै ई जिनगी
जे आय दिव्य अमर लोक सिरजी लेलियैै।