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बारह / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'
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चारों तरफ अन्य के चक्के चलते है अविराम
एक बार फिर जाग तपस्वी महाबली परसुराम
उठा परशु पामर खर-नर पर माँग रहा बलिदान
तेरी कुटिया में सोया है कबसे नियति विहान
हिम किरीट पर चढ़ कर बोली अय भारत की शान
आ नीचे लद्दाख माँगता है, वीरों के प्राण
बाली के यज्ञ अनल में डालों, कायर शिर का होम
होना था पत्थर को ईश्वर मगर हो गया मोम