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बारात और पाँव / उमा अर्पिता

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बारात देखने को
उत्सुकता से भाग उठते थे जो, वो थे
बचपन से जवानी की ओर
बढ़ते पाँव…
आज--
बारात को देखते ही
ठिठक उठते हैं जो, वो हैं
चढ़ती उम्र के
थके-हारे पाँव…

पाँव, जो अब हँसते नहीं,
खिलखिलाते नहीं
बस, धीरे-धीरे
सुबका करते हैं!
पाँव, जो थक चले हैं
गली से गुजरती
बारात देखते
और, उम्र की सीढ़ियाँ चढ़ते...!