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बिटिया पापा बोले / संजीव 'शशि'
Kavita Kosh से
मेरे कानों में लगता ज्यों, वह मिसरी-सी घोले।
बिटिया जब-जब पापा बोले।।
जब बाहर से वापस आऊँ,
दौड़ी आये द्वारे।
लगता जैसे खड़ी हुई हो,
ममता बाँह पसारे।
मुझे देख करके फिर उसका, हँसना हौले-हौले।
बिटिया जब-जब पापा बोले।।
जैसे भी मैं रखना चाहूँ,
वह वैसे रह जाये।
मेरे कम में भी वह हँसकर,
ज्यादा का सुख पाये।
अपने मन की मन में रखकर, नहीं जुबाँ वह खोले।
बिटिया जब-जब पापा बोले।।
बिटिया तेरे पापा का घर,
तेरा रैन बसेरा।
कल सब रिश्तेदार कहेंगे,
यही समय का फेरा।
मेरी ममता के पल छिन को, अंतर आज सँजोले।
बिटिया जब-जब पापा बोले।।