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बिना उनवान / एम. कमल
Kavita Kosh से
आत्मा खे
साड़े नथो सघिजे
मारे नथो सघिजे
-मगर - आत्मा खे
विकिणी त सघिजे थो।
(सोच जा पाछा, 1989)