भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिनोवा के सपना / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आजादी के बाद भी
क्रांति घुअिइयले हे,
दुस्मन के पानी से
आग ई बुझैले हे
फुटलै एक बार जब
क्रांति के सोवा,
धार कुंद करै ले
अयले बिनोबा
भूदान, भूदान
करके भुलैलकै,
शांति-शांति रटलै तब
कहाँ शांति लैलकै?
जेतना अंजर-बंजर सब
दान में मिल गेलै,
जुलुम जढ़ बनल रहल
कहाँ तनी हिल गेलै
बेचारा बिनोबा के
सपना बेकार गेलै
जितलै अमीर सब
गरिबका तो हार गेलै।