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बिल्कुल ज़रूरी नहीं / रश्मि प्रभा
Kavita Kosh से
उसकी चाल में कोई घबराहट नहीं,
न आँखों में शिकन,
न होठों पर शिकायत ।
हरियाली की गोद में,
वो एक और दिन को
सिर पर ढोती चली जा रही है।
लोग कहते हैं
"अहा, कितना सुंदर दृश्य है!"
कोई नहीं पूछता,
ना ही जानना चाहता है
कि उसने कब से नींद पूरी नहीं की !
उसके तलवों में कांटे चुभे या सपने !
देखने से सब सहज लगता है,
पर सहज हो ही
बिल्कुल जरूरी नहीं ।