भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिहरत अवध-बीथिन राम / तुलसीदास
Kavita Kosh से
राग नट
बिहरत अवध-बीथिन राम |
सङ्ग अनुज अनेक सिसु, नव-नील-नीरद स्याम ||
तरुन अरुन-सरोज-पद बनी कनकमय पदत्रान |
पीत-पट कटि तून बर, कर ललित लघु धनु-बान ||
लोचननिको लहत फल छबि निरखि पुर-नर-नारि |
बसत तुलसीदास उर अवधेसके सुत चारि ||