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बीच का मौन / संतोष अलेक्स
Kavita Kosh से
प्रेम की तुम्हारी अपनी परिभाषा है
जो मेरी परिभाषा
से काफी भिन्न है
तुम्हारे अपने तर्क हैं
मेरे अपने
खैर
मैं कुछ कहना नहीं चाहता
कहता भी तो तुम
शायद ही सुनती
मैं पूछना चाह रहा था कि
अब कमर दर्द कैसा है
तुमसे मिलना
एक संयोग था
हाथ थामना
साथ जीना
छूट जाना
पुन: ताल मेल बैठाना
यहाँ तक आकर
संतुलन बनाए रखना कठिन है
फिसलने का डर रहता है
चोट लगने का भी
हमारे बीच का मौन
बहुत खुबसूरत था
तुम्हारा चुप होना
महज खामोशी नहीं थी
यह शायद नकली ठहराव था
तुम्हें लगा कि मैं चिढ जाऊंगा
तुम मेरी सबसे बड़ी सौग़ात हो
बिल्कुल जीवन की तरह
जैसे थोड़ा नमक
थोड़ा पानी