भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बीन बजाओ / त्रिलोचन
Kavita Kosh से
बीन बजाओ
तार तार झंकार कर उठे
घोर व्यथा का भार हर उठे
प्राण प्राण से एक स्वर उठे
तान उठाओ
प्राणों को भर कर स्वर छलके
आभा नकई मुखों पर झलके
भुल जायँ सबको दुख कल के
गीत सुनाओ
(रचना-काल -19-2-62)