भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बुझौवल- खण्ड-2 / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

11
अजगर-अजगर मिली-जुली
कहीं सटी केॅ कहीं खुली
कोसो चलै, नै मानै छेक
टरक दबैलौं मरै नै एक ।
-सड़क
12
देह छुवै, देह छुवै नै दै
के छेकी हेनी, के छेकी है ?
-हवा
13
गावै खुब्बे, हिलै नै ठोर
कानै छै पर गिरै नै लोर
गला दबैवौ कुछ नै बोलतौं
कान अमेठवौ हाँसतै रहतौं ।
-रेडियो
14
एक चैॅर एक बित्ता के
भीतर फोंकी ऊपर ठोस
फूकी अगर उड़ावोॅ जों तोंय
फोंकी गूंजै भर-भर कोस ।
-शंख
15
बेलुन हेनोॅ फूलै-पचकै
तार जकां जे कभी नै लचकै
पानी छोड़ी गरमी पीयै
चमगादड़ रँ जिनगी जीयै ।
-छाता
16
खड़ा शीत में खाड़े रहै छै
भरी मुँह ढाँकी केॅ गाँती
गाँती हटेॅ तेॅ खलखल हाँसै
दाँत देखी केॅ लागै दाँती ।
-भुट्टा
17
हेनोॅ छै ई घर के धुनियाँ
मूँ में सूतोॅ कमर में सुइया
गेंदरा की यैं सीतै धुनियाँ
कपड़ा चीरै, छीटै रूइया ।
-मूसोॅ
18
पाँच भाय में सबसें छोटोॅ
जत्तेॅ नाँटोॅ ओत्तै मोटोॅ
है नै खाली एक्के छोटका
सब्भैं बोली बुलावै-मोटका ।
-अंगूठा
19
एक किला पर पाँच सिपाही
पाँचो-पाँच रकम के छै
जे बूझै कि मेल नै यै में
ऊ नै कोय करम के छै ।
-पाँचो अंगुली
20
धरती पर हेनोॅ एक बदरा
जै सें उजरोॅ पानी बरसै
सबटा पानी मनुक्खै पीयै
खेत-खेत पानी लेॅ तरसै ।
-गाय