भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बेटी की कविता-2 / नरेश चंद्रकर
Kavita Kosh से
"पापा! यह आधा चांद कहाँ चला गया?"
तीज के चांद पर
नज़र टिकाए कहती है वह
जवाब भी है उसके पास
"आधा चांद घर पर है
सो रहा है बादलों में अपने घर!"