भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेटी की किलकारी / ताराप्रकाश जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कन्या भ्रूण अगर मारोगे
माँ दुर्गा का शाप लगेगा,
बेटी की किलकारी के बिन
आँगन - आँगन नहीं रहेगा ।

जिस घर बेटी जन्म न लेती
वह घर सभ्य नहीं होता है ।
बेटी के आरतिए के बिन
पावन यज्ञ नहीं होता है ।
यज्ञ बिना बादल रूठेंगे
सूखेगी वर्षा की रिमझिम ।

बेटी की पायल के स्वर बिन
सावन - सावन नहीं रहेगा ।
आँगन - आँगन नहीं रहेगा ।

जिस घर बेटी जन्म न लेती
उस घर कलियाँ झर जाती हैं ।
ख़ुशबू निर्वासित हो जाती
गोपी गीत नहीं गाती है ।
गीत बिना वंशी चुप होगी
कान्हा नाच नहीं पाएगा ।

बिन राधा के रास न होगा
मधुबन - मधुबन नहीं रहेगा ।
आँगन - आँगन नहीं रहेगा ।

जिस घर बेटी जन्म न लेती
उस घर घड़े रीत जाते हैं,
अन्नपूरणा अन्न न देती
दुर्भिक्षों के दिन आते हैं ।
बिन बेटी के भोर अलूणी
थका-थका दिन साँझ बिहूणी ।

बेटी बिना न रोटी होगी
प्राशन - प्राशन नहीं रहेगा ।
आँगन-आँगन नहीं रहेगा ।

जिस घर बेटी जन्म न लेती
उसको लक्ष्मी कभी न वरती ।
भव सागर के भँवर - जाल में
उसकी नौका कभी न तरती ।
बेटी की आशीषों में ही
बैकुण्ठों का वासा होता ।

बेटी के बिन किसी भाल का
चन्दन - चन्दन नहीं रहेगा ।
आँगन - आँगन नहीं रहेगा।

जिस घर बेटी जन्म न लेती
वहाँ शारदा कभी न आती,
बेटी की तुतली बोली बिन
सारी कला विकल हो जाती,
बेटी ही सुलझा सकती है,
माता की उलझी पहेलियाँ ।

बेटी के बिन माँ की आँखों
अँजन - अँजन नहीं रहेगा ।
आँगन - आँगन नहीं रहेगा ।

जिस घर बेटी जन्म न लेगी
राखी का त्यौहार न होगा,
बिना रक्षाबन्धन भैया का
ममतामय संसार न होगा,
भाषा का पहला स्वर बेटी
शब्द - शब्द में आखर बेटी ।

बिन बेटी के जगत न होगा,
सजन - सजन नहीं रहेगा ।
आँगन - आँगन नहीं रहेगा ।

जिस घर बेटी जन्म न लेती
उसका निष्फल हर आयोजन,
सब रिश्ते नीरस हो जाते
अर्थहीन सारे सम्बोधन,
मिलना - जुलना, आना - जाना
यह समाज का ताना-बाना ।

बिन बेटी रूखे अभिवादन
वन्दन - वन्दन नहीं रहेगा ।
आँगन - आँगन नहीं रहेगा ।